बिसाहूलाल का हो सकता है रमेश सिंह से सामना 

खिलावन चंद्राकर 

भोपाल। मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र अर्थात रीवा-शहडोल रीजन के एकमात्र अनूपपुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने जा रहा है ।यह सीट कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री बिसाहूलाल सिंह के विधायक पद से त्यागपत्र के बाद से रिक्त हुई है । वे अब पार्टी छोड़ने वाले अन्य नेताओं के साथ भाजपा के अंग बन चुके हैं और बदले में उन्हें शिवराज सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद मिला है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट का चुनावी गणित बहुत उलझा हुआ है। 

भाजपा के पूर्व विधायक रामलाल रौतेल पार्टी के नए मेहमान बिसाहूलाल के साथ तो दिखते हैं किंतु पार्टी में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित माने जाते हैं। क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला जातिगत समीकरण भी आपस में उलझ गया है। भाजपा पहले ही ऐलान कर चुकी है कि कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व विधायकों को ही उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी बनाया जाएगा। ऐसी दशा में पार्टी के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं दावेदारों में निराशा के भाव है। वही पिछले 40 वर्षों से कांग्रेस में कब्जा जमाए हुए बिसाहूलाल के जाने के बाद मुख्यधारा में आने के लिए बेताब कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का उत्साह परवान चढ़ रहा है। इस बीच राजनीतिक क्षेत्र के अंदर खाने से खबर आ रही है कि बिसाहू लाल का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में राज्य सेवा के अधिकारी  रमेश सिंह से हो सकता है।

यह है कांग्रेस के दावेदार

क्षेत्र में कांग्रेस के कई नेता उप चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं  । वह अपने अपने स्तर पर दावेदारी करने में पीछे नहीं है। प्रमुख रूप से जिला पंचायत के सदस्य विश्वनाथ सिंह ,उमाकांत उईके और ललिता प्रधान की दावेदारी सामने आई है। किसी भी सूरत में चुनाव जीतने की तैयारी कर रही कांग्रेस ने क्षेत्र में चुनाव सर्वे करा कर उपचुनाव जीतने के योग्य प्रत्याशी की तलाश शुरू की है। क्षेत्र के चुनाव प्रभारी और विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति भी लगातार सक्रिय हैं। इस बीच रमेश सिंह के रूप में पार्टी के पास एक नया विकल्प का नाम सामने आया है। रमेश सिंह वर्तमान में पड़ोसी जिला शहडोल में संयुक्त कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। वह अनूपपुर क्षेत्र के ही खाड़ा गांव का निवासी है और कांग्रेस की टिकट के लिए प्रयासरत बताए जा रहे हैं। उनका सीधा संपर्क पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और क्षेत्र के चुनाव प्रभारी प्रजापति से है। ऐसे में पार्टी उन्हें चुनाव जीतने के योग्य प्रत्याशी के रूप में देख रही है। रमेश सिंह गोंड आदिवासी हैं जिनके मतदाताओं का क्षेत्र में सबसे ज्यादा  प्रतिशत है। इसी वर्ग से बिसाहूलाल सिंह भी आते हैं।

निर्णायक होंगे कोल और सवर्ण मतदाता

लगभग 165000 मतदाता वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस ने पिछला चुनाव लगभग 11.50 हजार मतों के अंतर से जीता था। इसमें क्षेत्र के 40 से 45 हजार सवर्ण और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा।  25 से 30 हजार मतदाता कोल आदिवासी वर्ग के हैं ,जो भाजपा के समर्थक माने जाते हैं। बिसाहूलाल से पराजित हुए रामलाल रौतेल इसी वर्ग से है जो पहले तो उनकी पराजय से निराश थे किंतु अब उनके घुर विरोधी बिसाहूलाल को मुख्यधारा में लाकर रामलाल को हाशिए में ढकेलने से काफी नाराज बताए जाते हैं। जो आगामी उपचुनाव में भाजपा के लिए सिर दर्द हो सकता है। संभवत यही कारण है कि क्षेत्र के सवर्ण मतदाताओं का समर्थन जुटाने के साथ ही पार्टी में लगातार उठ रहे असंतोष को कम करने के लिए भाजपा ने अपने दो पूर्व मंत्री और सवर्ण नेता राजेंद्र शुक्ला और संजय पाठक को यहां का चुनाव प्रभारी बनाया है। बदली हुई परिस्थितियों में मंत्री बनने से वंचित रहने के बाद यह दोनों भाजपा नेता कितनी सक्रियता से काम कर पाते हैं यह भविष्य के गर्त में है। 

विकास होगा बड़ा मुद्दा

क्षेत्र में होने जा रहे हैं उपचुनाव में क्षेत्रीय विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है। जिला मुख्यालय होने के बावजूद अनूपपुर आज भी सुविधाओं के अभाव में कस्बाई इलाके जैसा ही लगता है। लोगों का मानना है कि जिला बनने के पहले थोड़े बहुत जो भी विकास कार्य हुए हैं सभी बिसाहूलाल सिंह के मंत्री और दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही हुए हैं। 15 वर्षों के भाजपा शासनकाल में विकास की गति कुछ धीमी हुई है। लोगों को उम्मीद है कि जिला मुख्यालय में 200 बेड का अस्पताल, सर्व सुविधा युक्त बस स्टैंड, नवीन सब्जी मंडी, बाईपास रोड, फ्लाईओवर की सुविधाओं पर जनप्रतिनिधि कुछ ठोस निर्णय करेंगे। पेयजल और सिंचाई सुविधा का अभाव के साथ ही बेरोजगारी  बड़ी समस्या है जिसके निदान के लिए क्षेत्र की जनता इस चुनाव में नेताओं से सवाल कर सकती है। वैसे मौजूदा परिस्थितियों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि न सिर्फ चुनाव की तैयारियों में बल्कि जीत की संभावनाओं में भाजपा कुछ बढ़त बनाती हुई दिख रही है ।  जबकि कांग्रेस अभी तक अपने बिखर रहे कुनबे को बचाने और चुनाव जीतने की संभावना वाले प्रत्याशी की तलाश से उबर नहीं पाई है।

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Source : Agency